अम्बिकापुर/जशपुर। छत्तीसगढ़ का शिक्षा विभाग आज उस चौराहे पर खड़ा है जहाँ “सूचना का अधिकार” अब केवल नाम का अधिकार रह गया है। जशपुर जिले में शिक्षा विभाग के अफसरों ने पारदर्शिता के कानून की ऐसी धज्जियाँ उड़ाईं कि अब खुद संभागीय संचालक को हस्तक्षेप करना पड़ा है।
वार्ड क्रमांक 07, पत्थलगांव निवासी श्री हेप्पी भाठिया ने 14 अक्टूबर 2025 को शिक्षा विभाग, जशपुर से आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। कानून साफ कहता है - 30 दिनों के भीतर जवाब देना अनिवार्य है। लेकिन जशपुर के अफसरों ने नगद शुल्क देने की वजह से जानकारी देने से इनकार किया, - मानो यह नागरिक अधिकार नहीं, कोई “भीख” मांग ली गई हो!
इस खुली मनमानी पर जब मीडिया ने सवाल उठाए, तो सरगुजा संभाग के संयुक्त संचालक, शिक्षा विभाग ने पूरी ताकत से जवाबदेही तय करने की पहल की।
03 नवम्बर 2025 को जारी पत्र क्रमांक 3429/सूचना का अधिकार/संयो/2025-26 में उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी, जशपुर से तीन दिन के भीतर कारण बताओ स्पष्टीकरण मांगा है। आदेश में स्पष्ट चेतावनी दी गई है -
> “यदि समय-सीमा में जवाब नहीं मिला तो एकपक्षीय कार्यवाही होगी और जिम्मेदारी अधिकारी की खुद की होगी।”
यानी अब शिक्षा विभाग के भीतर उस दीवार में दरार पड़ चुकी है जहाँ वर्षों से आरटीआई आवेदनों को ठंडे बस्ते में डालने की संस्कृति पनप चुकी थी।
सूत्र बताते हैं कि हेप्पी भाठिया द्वारा मांगी गई जानकारी विभाग के कुछ वित्तीय और प्रशासनिक फैसलों से जुड़ी थी - जिनसे पर्दा उठने पर कई गड़बड़ियों के खुलासे का खतरा था। इसलिए फाइलें दबा दी गईं और कानून को ही किनारे रख दिया गया।
अब संचालक की यह कार्यवाही पूरे संभाग के अफसरों के लिए “कानूनी झटका” साबित हो सकती है। अगर तीन दिन में जवाब नहीं मिला, तो संभव है कि मामला निलंबन या अनुशासनात्मक जांच तक पहुंचे।
*जनता का सवाल बड़ा सीधा है :*
> “जब शिक्षा विभाग ही सूचना के अधिकार से डरने लगे, तो छात्रों को ईमानदारी और संविधान का पाठ कौन पढ़ाएगा?”


