सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की अनदेखी - अधिकारी की मनमानी से पारदर्शिता पर उठे सवाल...
छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले में सूचना के अधिकार (RTI) कानून की अवहेलना का गंभीर मामला सामने आया है। जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) कार्यालय, जशपुर द्वारा जारी पत्र (क्रमांक 3958/सूचना अधि./आवेदन/2025, दिनांक 28 अक्टूबर 2025) से यह स्पष्ट हुआ है कि विभाग ने एक नागरिक का सूचना आवेदन सिर्फ इस आधार पर निरस्त कर दिया, क्योंकि उसने ₹10 का आवेदन शुल्क डिमांड ड्राफ्ट या पोस्टल ऑर्डर के बजाय नकद में भुगतान करने की इच्छा जताई थी।
पत्र के अनुसार, श्री हैप्पी भाटिया, वार्ड क्रमांक 07, पत्थलगांव, जिला जशपुर निवासी ने दिनांक 14 अक्टूबर 2025 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन दिया था। आवेदन का विषय था – पत्थलगांव कार्यालय में सहायक ग्रेड-03 के पद पर कार्यरत कर्मचारी अरविंद बंजारे की नियुक्ति से संबंधित अभिलेखों की जानकारी। आवेदक ने नियमों के अनुसार आवेदन शुल्क ₹10 जमा करने की बात कही थी।
लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय की ओर से जनसूचना अधिकारी श्रीमती सरोज खलखो, सहायक संचालक (योजना), ने जारी पत्र में लिखा कि -
> “आपके द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत आवेदन शुल्क ₹10 का भुगतान जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में डिमांड ड्राफ्ट/भारतीय पोस्टल ऑर्डर से नहीं किया गया है। अतः आपका आवेदन निरस्त किया जाता है।”
पत्र पर हस्ताक्षर जनसूचना अधिकारी द्वारा 23 अक्टूबर 2025 को किए गए हैं और इसे 28 अक्टूबर को निर्गत किया गया।
यह आदेश न केवल RTI कानून की मूल भावना के विपरीत है बल्कि यह छत्तीसगढ़ राज्य सूचना का अधिकार नियम, 2005 के प्रावधानों का भी स्पष्ट उल्लंघन है।
इन नियमों के नियम 3 में स्पष्ट उल्लेख है कि -
> “आवेदन शुल्क ₹10 नकद, डिमांड ड्राफ्ट, भारतीय पोस्टल ऑर्डर या ट्रेज़री चालान के माध्यम से जमा किया जा सकता है।”
अर्थात आवेदक को नकद भुगतान का पूरा अधिकार है, और संबंधित विभाग का दायित्व है कि वह नकद राशि प्राप्त कर समुचित रसीद जारी करे। लेकिन जशपुर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने इस अधिकार को मानने से इंकार कर दिया, जिससे यह सिद्ध होता है कि विभाग के अधिकारी स्वयं RTI कानून की प्रक्रिया से अनभिज्ञ हैं या जानबूझकर पारदर्शिता से बचना चाहते हैं।
कानूनी जानकारों का कहना है कि इस तरह आवेदन निरस्त करना धारा 6(1) और धारा 7(1) का उल्लंघन है। आवेदक अब चाहें तो प्रथम अपील जिला शिक्षा अधिकारी (जशपुर) के वरिष्ठ अधिकारी के समक्ष दाखिल कर सकते हैं, या सीधे छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग, नवा रायपुर में शिकायत प्रस्तुत कर सकते हैं।
यह मामला प्रशासनिक लापरवाही से अधिक नागरिक अधिकारों के हनन का प्रतीक बन गया है। जब स्वयं शिक्षा विभाग जो नागरिकों में जागरूकता और पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने का जिम्मेदार है। RTI कानून की अनदेखी करता है, तब यह पूरी शासन व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
छत्तीसगढ़ में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू होने के 20 वर्ष बाद भी यदि अधिकारी आवेदन स्वीकारने से बचने के लिए “तकनीकी कारण” बताकर सूचना रोके हुए हैं, तो यह लोकतंत्र के उस स्तंभ पर चोट है, जो पारदर्शिता और जवाबदेही पर टिका है।
अब देखना यह होगा कि इस मामले में आवेदक अपनी अपील के ज़रिए न्याय पाता है या नहीं — और क्या राज्य सूचना आयोग ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करेगा, जो नागरिकों को सूचना से वंचित कर रहे हैं।
🔸 विशेष टिप्पणी :
> RTI कानून जनता का अधिकार है, और नकद में शुल्क देने का विकल्प भी उसी अधिकार का हिस्सा है।
जशपुर जिला शिक्षा अधिकारी का यह कदम न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि यह आम नागरिक की आवाज़ दबाने की कोशिश भी है।
